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केरल का नाम लेते ही प्राकृतिक सौन्दर्य के अलावा जो चीज हमारे मन में आती है वह है आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली. केरल ने आयुर्वेद का विकास एक चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ पर्यटन उद्योग के रूप में भी किया है. आज जितने भी विदेशी भारत चिकित्सा के लिए आते है उनकी पहली पसंद केरल होती है और तो और भारतीय भी अपनी इस अमूल्य धरोहर का भरपूर आनंद उठाना चाहते हैं.
आयुर्वेद भारत के पारंपरिक स्वास्थ्य विज्ञान का एक हिस्सा है. आयुर्वेद शब्द का अर्थ है जीवन का विज्ञान. आयुर्वेद न केवल रोगों को दूर करता है बल्कि उसका पहला ध्यान होता है रोगों को दूर रखने पर. यह एक तरह की जीवन-शैली है जिसमें स्वस्थ रहने के तरीके बताए जाते हैं. इस तरह यह न केवल एक चिकित्सा प्रणाली है, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है. आयुर्वेद की मान्यता है कि शरीर में वात, पित्त और कफ के असंतुलित होने पर व्यक्ति रोग ग्रस्त हो जाता है. अतः इस भारतीय चिकित्सा पद्धति के द्वारा इन्हीं तीनों विकारों के असंतुलन को ठीक कर रोगी का उपचार किया जाता है. उत्तर भारत में चरक या सुश्रुत संहिता आयुर्वेद के मूल ग्रंथ हैं परंतु केरल में आयुर्वेद बौद्ध धर्म क़ी देन रही है.
खास केरल की बात की जाए तो इस पद्धति का महत्व बढ़ जाता है. केरल भारत का सबसे साक्षर राज्य है और आयुर्वेद की पूरी पद्धति के साथ संस्कृत को भी महत्व देता है. केरल में पाई जाने वाली कुछ विशेष चिकित्सा पद्धतियां है विष चिकित्सा, चेचक और अन्य संक्रामक ज्वरों की चिकित्सा, गज चिकित्सा आदि. ज्वर और मिर्गी में प्रभावी गोरोचनादि, कंपनचादि जैसी दवाएं अन्यत्र कहीं नहीं मिलतीं. धार, पिझिचिल आदि विधियां शोधन चिकित्सा का उपयोग करने वाले केरल के आचार्यों द्वारा विकसित की गई हैं. जिस बात ने केरल में आर्युवेद को बढने में सहायता की है वह है इस केरल का स्वास्थ्य सेवाओं में जाति व धर्म के बंधनों से ऊपर उठ कर काम करना.
केरल में आयुर्वेद के महत्व लोगों के लिए बहुत कुछ है, वहां यह मात्र एक स्पा मालिश नहीं है बल्कि ऐसी चिकित्सा पद्धति है कि जिसमें प्राकृतिक तरीके से रोगों का उपचार किया जाता है.
तो अगर आप अगली बार केरल जा रहे हैं तो अपनी किसी पुरानी बीमारी का उपचार कराना न भूलें साथ ही प्राकृतिक उपचार प्रणाली का भरपूर आनंद उठाएं.
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