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मांडू मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित है. यह इन्दौर से लगभग 10 किमी दूर है. माण्डू विंध्य की पहाडियों में 2000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. प्राचीन समय में यह मालवा के परमार राजाओं की राजधानी रहा था. तेरहवीं शती में मालवा के सुलतानों ने इसका नाम शादियाबाद यानी “खुशियों का शहर” रख दिया था. यह नाम इस जगह को सार्थक करता है. यहां के दर्शनीय स्थलों में जहाज महल, हिन्डोला महल, शाही हमाम और आकर्षक नक्काशीदार गुम्बद वास्तुकला के उत्कृष्टतम रूप हैं.
सुल्तानों के काल में यहां महत्वपूर्ण निर्माण हुए. दिलावर खां गोरी ने इसका नाम बदलकर शादियाबाद(आनंद नगरी) रखा. होशंगशाह इस वंश का महत्वपूर्ण शासक था. मुहम्मद खिलजी ने मेवाड के राणा कुम्भा पर विजय के उपलक्ष्य में अशर्फी महल से जोड़कर सात मंजिला विजय स्तंभ का निर्माण कराया. जहाज महल माण्डू का सर्वाधिक चर्चित स्मारक है. चारों तरफ पानी से घिरे होने के कारण यह जहाज का दृश्य उपस्थित करता है. इसकी आकृति टी के आकार की है. इसका निर्माण परमार राजा मुंज के समय हुआ किंतु इसके सुदृढीकरण का श्रेय गयासुद्दीन खिलजी को है.
माण्डू की सबसे बडी विशेषता इसकी अंत: भूगर्भीय संरचना है. माण्डू का फैलाव जितना ऊपर है उतना ही नीचे है. शत्रु के आक्रमण के समय यह भूगर्भीय रचना सुरक्षा का एक साधन भी थी.
माण्डू के स्मारक, जहाज़ महल के अतिरिक्त ये भी हैं—दिलावर ख़ाँ की मस्ज़िद, नाहर झरोखा, हाथी पोल दरवाज़ा (मुग़ल कालीन), होशंगशाह तथा महमूद ख़िलज़ी के मक़बरे. रेवाकुंड बाज़बहादुर और रूपमती के महलों के पास स्थित है. यहाँ से रेवा या नर्मदा दिखलाई पड़ती है. कहा जाता है कि रूपमती प्रतिदिन अपने महल से नर्मदा का पवित्र दर्शन किया करती थी.
माण्डू का दर्शन वादिए कश्मीर का आभास देता है. यहां हरी-भरी वादियां, नर्मदा का सुरम्य तट ये सब मिलकर माण्डू को मालवा का स्वर्ग बनाते हैं.
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