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महाकाल की नगरी उज्जैन में कई महत्वपूर्ण मंदिरों के अलावा नगर से थोड़ी दूर एक गुफा है। यह अपने भीतर रहस्यों की एक पूरी दुनिया ही समेटे हुए है। दूसरी तरफ बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध सांची है, जहां कलिंग युद्ध के बाद मर्माहत सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
एक कथा है पुराणों में कि जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया तब उसमें से कई अमूल्य चीजें प्राप्त हुई। इनमें एक अमृत कलश भी था। देवता बिलकुल नहीं चाहते थे कि इस अमृत का थोड़ा सा भी हिस्सा वे राक्षसों के साथ बांटें। देवराज इंद्र के संकेत देने पर उनका पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर भाग निकला। राक्षस उसके पीछे-पीछे भागे। कलश पर कब्जे के लिए बारह दिनों तक हुए संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर छलक पड़ीं। ये स्थान हैं- हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन । कलश से छलकी अमृत बूंदों को इन स्थानों पर स्थित पवित्र नदियों ने अंगीकार कर लिया। उज्जैन के किनारे बहने वाली शिप्रा भी इन नदियों में से एक थी।
उज्जैन के लिए निकटतम हवाई अड्डा इंदौर है, जो उज्जैन से पचपन किलोमीटर की दूरी पर है। इंदौर में रेलवे स्टेशन भी है जो दिल्ली, मुंबई, बनारस, भोपाल, अहमदाबाद, बिलासपुर और जयपुर जैसे महत्वपूर्ण स्थानों से सीधा जुड़ा है। इंदौर से उज्जैन बस या ट्रेन के जरिये आसानी से 45 मिनट में पहुंचा जा सकता है।
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