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अगर आप इस बार छुट्टियों में महाराष्ट्र घूमने जा रहे हैं और आपकी दिलचस्पी लोककलाओं में है तो वहां जाकर आप वहां की सुप्रसिद्ध लोककला वर्ली पेंटिंग को अपनी महाराष्ट्र यात्रा के यादगार तौर पर अपने साथ घर ले जाना न भूलें। महाराष्ट्र के थाणे जिले के आसपास दामु और तालासेरि तालुके में रहने वाली वर्ली नामक आदिवासी जनजाति के नाम पर ही इस पारंपरिक कला को वर्ली पेंटिंग कहा जाता है, क्योंकि भित्ति चित्र की यह शैली महाराष्ट्र की इसी जनजाति की परंपराओं और रीति-रिवाजों से जुड़ी है। महाराष्ट्र का यह क्षेत्र उत्तरी और पश्चिमी दिशा के सह्याद्री पर्वतमालाओं के बीच स्थित है। यहां के लोगों की आजीविका का मुख्य आधार कृषि है। भारत के अन्य सभी भागों की तरह यहां के किसान भी धान की फसल कटने के बाद पहली फसल की पैदावार अपने कुलदेवता को समíपत करते हैं, उसके बाद ही उस फसल को भोजन के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
इस अवसर पर वे अपने पड़ोसियों और रिश्तेदारों को भोजन कराते हैं। इस आयोजन को मराठी में नवाभात कहा जाता है। नवाभात के अवसर पर कृषक परिवार की स्ति्रयां अपने घर के मुख्यद्वार और घर की बाहरी दीवारों को मिट्टी और गोबर से लीप कर उस पर कोयले के पाउडर में बरगद या पीपल के पेड़ के तने से निकाले गए गोंद को मिलाकर पहले काले रंग की पृष्ठभूमि तैयार करती हैं। गोंद का इस्तेमाल रंग को पक्का करने के लिए किया जाता है.
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